Wednesday, February 23, 2011

बसंत पर अपने-अपने अंदाज मं काफी कुछ लिखा गया है,लिखा जा रहा है । मेघालय के शिलांग में बसंत के दौरान हवा एक अनूठी प्रकार की अठखेली करती है। बांस से बने घरों या चहारदीवारियों से हवा की टकराहट से उत्‍पन्‍न कम्‍पन जहां दिन में संगीत सी सुरीली लगती है तो वहीं रात के सन्‍नाटे में डराती भी है। कभी कभी तो हवा का वेग इतना अधिक होता है कि खिड़की और दरवाजे जोर से खड़खड़ाने लगते हैं । प्रस्‍तुत है शिलांग में बसंत पर एक कविता

अंत हुआ शीत का
लो आ गया बसंत
बिगड़ैल संत सा
छा गया बसंत
आर्किड के फूलों पर
तितलियों की हलचल
नाच रहे वृक्ष ओढ़
फूलों का ऑंचल
धूल से अबीर ले
पंखुडि़यों से गुलाल
धरा व आकाश में
उड़ा रहा बसंत
चल पड़ी बयार
छोड़ अपना घरबार,द्वार
खिड़की,किवाड़
हर किसी के
खटखटाने लगी
रंग बिरंगे में जेन्सम में
खासी किशोरियां
चर्च को तैयार
मधुर स्वर में
कोरस गाने लगीं
पवन ताल ठोक रहा,
भौंरे उड़ रहे अनन्त
अंत हुआ शीत का
लो गा रहा बसंत

जेन्सम (खासी परिधान)

15 comments:

  1. बधाई हो आपको मि‍जोरम, शि‍लांग में प्रवास का मौका मि‍ला। कुछ लोगों के लि‍ये जो चीज आम होती है, वही करोड़ों के लि‍ये खास होती है। ऐसा ही विभि‍न्‍न वि‍षयों और क्षेत्रों में रहने वालों के साथ भी है। कैमरे से तस्‍वीरें लेकर आप हमें अपने सपनों के गांव के दर्शन समय समय पर करवा सकते हैं।

    ReplyDelete
  2. वाह सच मे वसंतमयी रचना पढकर दिल वसंतमय हो गया।

    ReplyDelete
  3. शब्दों की जादूगरी से आपने बसंत का चित्र खींच दिया है.....साधुवाद...

    नीरज

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  5. बहुत खूबसूरत भाव भरेँ है आपने वसंतमयी रचना मेँ ।
    बधाई........ !

    ReplyDelete
  6. अरे सचमुच वसंत का कोमल एहसास महसूस हुआ इस रचना को पढकर!!

    (word verification हटा दें)

    ReplyDelete
  7. बहुत खूबसूरत बसंत का चित्र खींच दिया है

    ReplyDelete
  8. प्रेमदिवस की शुभकामनाये !
    कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

    ReplyDelete
  9. जोशी जी, लगता है शिलोंग प्रवास के वो दिन अभी भी आपके मन में कहीं जगह बनाए हुए हैं,

    वसंतोत्सव को शब्दों में रंग दिया....... साधुवाद.

    ReplyDelete
  10. वसंतोत्सव को शब्दों में रंग दिया.

    jai baba banaras-----

    ReplyDelete
  11. भूल जा झूठी दुनियादारी के रंग....
    होली की रंगीन मस्ती, दारू, भंग के संग...
    ऐसी बरसे की वो 'बाबा' भी रह जाए दंग..

    होली की शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  12. जोशी जी, कुछ ऐसा नहीं लगता ही ज्यादा ही विश्राम कर लिया है.

    ReplyDelete
  13. देर से पढ़ा लेकिन सुखद अनुभूति हुई - बहुत खूब

    ReplyDelete
  14. बहुत अच्छी रचना पढाने को मिली |बधाई
    आशा

    ReplyDelete