बसंत पर अपने-अपने अंदाज मं काफी कुछ लिखा गया है,लिखा जा रहा है । मेघालय के शिलांग में बसंत के दौरान हवा एक अनूठी प्रकार की अठखेली करती है। बांस से बने घरों या चहारदीवारियों से हवा की टकराहट से उत्पन्न कम्पन जहां दिन में संगीत सी सुरीली लगती है तो वहीं रात के सन्नाटे में डराती भी है। कभी कभी तो हवा का वेग इतना अधिक होता है कि खिड़की और दरवाजे जोर से खड़खड़ाने लगते हैं । प्रस्तुत है शिलांग में बसंत पर एक कविता
अंत हुआ शीत का
लो आ गया बसंत
बिगड़ैल संत सा
छा गया बसंत
आर्किड के फूलों पर
तितलियों की हलचल
नाच रहे वृक्ष ओढ़
फूलों का ऑंचल
धूल से अबीर ले
पंखुडि़यों से गुलाल
धरा व आकाश में
उड़ा रहा बसंत
चल पड़ी बयार
छोड़ अपना घरबार,द्वार
खिड़की,किवाड़
हर किसी के
खटखटाने लगी
रंग बिरंगे में जेन्सम में
खासी किशोरियां
चर्च को तैयार
मधुर स्वर में
कोरस गाने लगीं
पवन ताल ठोक रहा,
भौंरे उड़ रहे अनन्त
अंत हुआ शीत का
लो गा रहा बसंत
जेन्सम (खासी परिधान)
Wednesday, February 23, 2011
Friday, February 18, 2011
आपकी सेवा में दो कविताएं प्रस्तुत हैं । अभी नया हूं ब्लागजगत में इसलिए सबको फालो नहीं कर पा रहा हूं लेकिन आपके सुझाव मेरा मार्गदर्शन अवश्य करेंगे इस आकांक्षा के साथ
कवि
क्या है कवि
एक राज-मिस्त्री
जो शब्द-रूपी र्इटों को
विचारों के गारे से
जोड़-जोड़ कर
बनाता है
कविता का महल
या एक दर्जी
जो शब्दों को कपड़े
की तरह काट छांट कर
अलग-अलग डिजाइनों
में संवार कर
रचता है
मनभावन परिधान
या एक बढ़र्इ
जो बेजान
लकड़ी से शब्दों
को रंधे से छील
करता है निर्मित
विविध संरचनाएं
कविता को
नया रूप देने के लिए
या एक संगतराश
जो पत्थर से
कठोर शब्दों
को तराश कर
बनाता है
एक सजीव मूर्ति
एक चित्रकार
जो शब्दों को भावों के
रंग में डुबोकर
मन के कैनवस पर
उकेरता है
अपना अदभुत संसार
क्या है कवि
फुर्र होता कबूतर
निर्झर की झर-झर
समाज का साबुन
भौरें की गुन-गुन
शब्दों की उधेड़बुन
या सिर्फ -घुन
2 तेरी -मेरी
दिल्ली में भी, दो दिल्ली हैं
तेरी दिल्ली, मेरी दिल्ली
तेरी दिल्ली, बहुत बड़ी है
छोटी सी है, मेरी दिल्ली,
तेरी दिल्ली, मंडी-हाउस
मेरी दिल्ली, खारी-बावली
तेरी दिल्ली, लाल-किेले सी
मेरी जमुना, जैसी काली
तेरी दिल्ली, एयरपोर्ट सी
मेरी डग्गामार, बस वाली
तेरी दिल्ली, बड़ी बेशरम
मेरी दिल्ली, भोली-भाली
तेरी दिल्ली, बहुमंजिली
मेरी दिल्ली, झोपड़पट्टी
तेरी दिल्ली, एयरकंडीशन
मेरी जैसे, तपती भट्टी
तेरी दिल्ली, हरी-भरी है
धूल-धूसरित मेरी दिल्ली
तेरी दिल्ली, आतंकी है
आतंकित है, मेरी दिल्ली
तेरी दिल्ली, लेमोजिन सी
फर-फर-फर फर्राटे भरती
मेरी दिल्ली, फसें जाम में
ज्यों कोई मारुति चलती
तेरी दिल्ली, जब सोती है,
तब जगती है, मेरी दिल्ली
ठक-ठक, करती पहरा देती
रात काटती, मेरी दिल्ली
तेरी दिल्ली, दिल वाली है
मेरी दिल्ली, से दिल दूर
फिर भी सबका पेट भरे ये
पूंजीपति हो या मजदूर
दिल्ली में भी दो दिल्ली हैं
तेरी दिल्ली, मेरी दिल्ली
तेरी दिल्ली, पैसे वाली
मेरी दिल्ली, खाली-खाली ।
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