जड़
सारी गड़बड़ियों की
जड़ है ये व्यवस्था
इसकी जड़ों को सींचने के लिए
ही करने पड़ते हैं
ढेर सारे प्रपंच
और प्रपंचों के बीच ही
उपजती हैं गड़बड़ियां
तो व्यवस्था कौन बनाता है
समाज
तो फिर सारी गड़बड़ियों की
जड़ है ये समाज
इसी समाज में तो
उपजते हैं, सारे संताप
ऊँच-नीच, पाप-ताप
लूटमलूट-मारकाट
तो फिर ये समाज
कौन बनाता है
हम और तुम
तो फिर सारी गड़बड़ियों
की जड़ हैं
हम और तुम
तो किसको सुधारें
स्वयं को
समाज को
या व्यवस्था को ।
फ्लार्इ ओवर
ये- ओवरब्रिज
ये -फ्लार्इओवर
ये- अर्धचंद्राकार पुल
मुझे
इसलिए नहीं लुभाते
कि ये प्रगति की
पहचान हैं
या मेरे शहर की
शान हैं
जाम से निजात
दिलाते हैं
हमें ग्लोबल बनाते हैं
वरन, इसलिए भी
सुहाते हैं क्योंकि
ये बहुतों को
भीषण ठंड में
खुले आसमान के नीचे
न होने का
अहसास दिलाते हैं
और बारिश में
तो सचमुच
शैल्टर बन जाते हैं।