Friday, February 18, 2011

आपकी सेवा में दो कविताएं प्रस्‍तुत हैं । अभी नया हूं ब्‍लागजगत में इसलिए सबको फालो नहीं कर पा रहा हूं लेकिन आपके सुझाव मेरा मार्गदर्शन अवश्‍य करेंगे इस आकांक्षा के साथ
कवि
क्या है कवि
एक राज-मिस्त्री
जो शब्द-रूपी र्इटों को
विचारों के गारे से
जोड़-जोड़ कर
बनाता है
कविता का महल
या एक दर्जी
जो शब्दों को कपड़े
की तरह काट छांट कर
अलग-अलग डिजाइनों
में संवार कर
रचता है
मनभावन परिधान
या एक बढ़र्इ
जो बेजान
लकड़ी से शब्दों
को रंधे से छील 
करता है निर्मित
विविध संरचनाएं
कविता को
नया रूप देने के लिए
या एक संगतराश   
जो पत्थर से  
कठोर शब्दों
को तराश कर
बनाता है
एक सजीव मूर्ति
एक चित्रकार
जो शब्दों को भावों के
रंग में डुबोकर
मन के कैनवस पर
उकेरता है
अपना अदभुत संसार
क्या है कवि
फुर्र होता कबूतर
निर्झर की झर-झर  
समाज का साबुन
भौरें की गुन-गुन
शब्दों की उधेड़बुन
या सिर्फ -घुन  

2  तेरी -मेरी
दिल्‍ली में भी, दो दिल्‍ली हैं
तेरी दिल्‍ली, मेरी दिल्‍ली
तेरी दिल्‍ली, बहुत बड़ी है
छोटी सी है, मेरी दिल्‍ली,
तेरी दिल्‍ली, मंडी-हाउस
मेरी दिल्‍ली, खारी-बावली
तेरी दिल्‍ली, लाल-किेले सी 
मेरी जमुना, जैसी काली
तेरी दिल्‍ली, एयरपोर्ट सी
मेरी डग्‍गामार, बस वाली
तेरी दिल्‍ली, बड़ी बेशरम
मेरी दिल्‍ली, भोली-भाली
तेरी दिल्‍ली, बहुमंजिली
मेरी दिल्‍ली, झोपड़पट्टी
तेरी दिल्‍ली, एयरकंडीशन
मेरी जैसे, तपती भट्टी
तेरी दिल्‍ली, हरी-भरी है
धूल-धूसरित मेरी दिल्‍ली
तेरी दिल्‍ली, आतंकी है
आतंकित है, मेरी दिल्‍ली
तेरी दिल्‍ली, लेमोजिन सी
फर-फर-फर फर्राटे भरती
मेरी दिल्‍ली, फसें जाम में
ज्‍यों कोई मारुति चलती
तेरी दिल्‍ली, जब सोती है,
तब जगती है, मेरी दिल्‍ली
ठक-ठक, करती पहरा देती
रात काटती, मेरी दिल्‍ली
तेरी दिल्‍ली, दिल वाली है
मेरी दिल्‍ली, से दिल दूर
फिर भी सबका पेट भरे ये
पूंजीपति हो या मजदूर   
दिल्‍ली में भी दो दिल्‍ली हैं
तेरी दिल्‍ली, मेरी दिल्‍ली
तेरी दिल्‍ली, पैसे वाली
मेरी दिल्‍ली, खाली-खाली ।

11 comments:

  1. सबसे पहले तो ब्लोगजगत मे आपका स्वागत है।
    दोनो कविताये शानदार और पहली कविता के भाव बेहतरीन हैं…………कवि और कविता की इतनी सुन्दर व्याख्या की है कि दिल खुश हो गया।

    आप सबको नही जानते तो क्या हुआ………जो भी आपके ब्लोग पर आये उन्हे फ़ोलो कर लिजिये और फिर उनके ब्लोग से दूसरो को……………इस तरह काफ़ी लोगो तक आपकी पहुँच हो जायेगी।

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  2. दोनो ही कविताओं की जितनी भी तारीफ की जाये कम है
    पहली कविता जहाँ एक कवि के सीने को चौडा करती है वही दूसरी कविता देश की राजधानी की सच्चाई से अवगत कराती है ।
    इन दोनो अनमोल कविताओ के लिए बधाई स्वीकार करें

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  3. अच्छी लगी दोनों कविताए सभी बड़े शहरों का यही हाल है हर बड़े शहर में एक पुराना और एक नया शहर और उनके बिच का अंतर दिखा जायेगा |

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  4. अपने ब्लॉग से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिये इससे टिपण्णी देने में परेशानी होती है |

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  5. हरीश जोशी जी!
    आपकी दोनों रचनाएं सराहनीय हैं......
    बधाई एवं उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामना।
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  6. दोनों रचनाएं सराहनीय हैं|दोनो अनमोल कविताओ के लिए बधाई|

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  7. Kavi ko badiya paribhashit kar mahanagaron ka haal-behaal ujagar karti prastuti bahut badiya lagi... badiya saarthak prastuti ke liye haardik shubhkamnayen..

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  8. जोशी जी, मैंने एक पोस्ट लिखी थी, ये दिल्ली है बाबू जी, वास्तव में उस पोस्ट का तत्थ आपकी कविता में नज़र आता है.
    शुभ कामनाएं स्वीकार कीजिए - सुंदर कविताओं के लिए.
    और २० दिन हो गए आपने कोई और पोस्ट नहीं लिखी......... बाबा के ब्लॉग वाला हाल मत कीजिए, कि एक पोस्ट लिख कर सो गए.......
    शरीर में दिक्कतें काफी हैं और फिलहाल अपनी उर्जा प्रेस कार्यों (डिजाईन) हेतु संभाल रहा हूँ, कुछ दिन बाद फिर से बक बक चालू करूँगा.......
    बहरहाल आप लिखते रहिये........
    खैरियत लेने के लिए आभार.

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  9. दोनों कवितायें अच्छी लगीं। आनंददायक लगा कि हम भी और आप भी मेरी दिल्ली वाले ही हैं, तेरी दिल्ली वाले नहीं।

    और डाक्टर साहब, ऊपर Ashumala Ji ने भी कहा है, हम भी यही कहते हैं कि वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा दीजिये। कमेंट्स में सुविधा रहती है। वैसे ब्लाग आपका है, चाहें तो न भी हटायें:)

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  10. शुभ कामनाएं स्वीकार कीजिए - सुंदर कविताओं के लिए.
    jai baba banaras.

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  11. दिल्ली के दो प्रकार बताते हुए , एक बेहद ही रोचक अंदाज़ में लिखी गयी ये रचना अनोखी एवं प्रशंसनीय है ।

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