बसंत पर अपने-अपने अंदाज मं काफी कुछ लिखा गया है,लिखा जा रहा है । मेघालय के शिलांग में बसंत के दौरान हवा एक अनूठी प्रकार की अठखेली करती है। बांस से बने घरों या चहारदीवारियों से हवा की टकराहट से उत्पन्न कम्पन जहां दिन में संगीत सी सुरीली लगती है तो वहीं रात के सन्नाटे में डराती भी है। कभी कभी तो हवा का वेग इतना अधिक होता है कि खिड़की और दरवाजे जोर से खड़खड़ाने लगते हैं । प्रस्तुत है शिलांग में बसंत पर एक कविता
अंत हुआ शीत का
लो आ गया बसंत
बिगड़ैल संत सा
छा गया बसंत
आर्किड के फूलों पर
तितलियों की हलचल
नाच रहे वृक्ष ओढ़
फूलों का ऑंचल
धूल से अबीर ले
पंखुडि़यों से गुलाल
धरा व आकाश में
उड़ा रहा बसंत
चल पड़ी बयार
छोड़ अपना घरबार,द्वार
खिड़की,किवाड़
हर किसी के
खटखटाने लगी
रंग बिरंगे में जेन्सम में
खासी किशोरियां
चर्च को तैयार
मधुर स्वर में
कोरस गाने लगीं
पवन ताल ठोक रहा,
भौंरे उड़ रहे अनन्त
अंत हुआ शीत का
लो गा रहा बसंत
जेन्सम (खासी परिधान)
बधाई हो आपको मिजोरम, शिलांग में प्रवास का मौका मिला। कुछ लोगों के लिये जो चीज आम होती है, वही करोड़ों के लिये खास होती है। ऐसा ही विभिन्न विषयों और क्षेत्रों में रहने वालों के साथ भी है। कैमरे से तस्वीरें लेकर आप हमें अपने सपनों के गांव के दर्शन समय समय पर करवा सकते हैं।
ReplyDeleteवाह सच मे वसंतमयी रचना पढकर दिल वसंतमय हो गया।
ReplyDeleteशब्दों की जादूगरी से आपने बसंत का चित्र खींच दिया है.....साधुवाद...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव भरेँ है आपने वसंतमयी रचना मेँ ।
ReplyDeleteबधाई........ !
अरे सचमुच वसंत का कोमल एहसास महसूस हुआ इस रचना को पढकर!!
ReplyDelete(word verification हटा दें)
बहुत खूबसूरत बसंत का चित्र खींच दिया है
ReplyDeleteप्रेमदिवस की शुभकामनाये !
ReplyDeleteकई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
जोशी जी, लगता है शिलोंग प्रवास के वो दिन अभी भी आपके मन में कहीं जगह बनाए हुए हैं,
ReplyDeleteवसंतोत्सव को शब्दों में रंग दिया....... साधुवाद.
वसंतोत्सव को शब्दों में रंग दिया.
ReplyDeletejai baba banaras-----
भूल जा झूठी दुनियादारी के रंग....
ReplyDeleteहोली की रंगीन मस्ती, दारू, भंग के संग...
ऐसी बरसे की वो 'बाबा' भी रह जाए दंग..
होली की शुभकामनाएं.
जोशी जी, कुछ ऐसा नहीं लगता ही ज्यादा ही विश्राम कर लिया है.
ReplyDeletebahut badiya basanmayee prastuti...
ReplyDeleteदेर से पढ़ा लेकिन सुखद अनुभूति हुई - बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना पढाने को मिली |बधाई
ReplyDeleteआशा