जड़
सारी गड़बड़ियों की
जड़ है ये व्यवस्था
इसकी जड़ों को सींचने के लिए
ही करने पड़ते हैं
ढेर सारे प्रपंच
और प्रपंचों के बीच ही
उपजती हैं गड़बड़ियां
तो व्यवस्था कौन बनाता है
समाज
तो फिर सारी गड़बड़ियों की
जड़ है ये समाज
इसी समाज में तो
उपजते हैं, सारे संताप
ऊँच-नीच, पाप-ताप
लूटमलूट-मारकाट
तो फिर ये समाज
कौन बनाता है
हम और तुम
तो फिर सारी गड़बड़ियों
की जड़ हैं
हम और तुम
तो किसको सुधारें
स्वयं को
समाज को
या व्यवस्था को ।
फ्लार्इ ओवर
ये- ओवरब्रिज
ये -फ्लार्इओवर
ये- अर्धचंद्राकार पुल
मुझे
इसलिए नहीं लुभाते
कि ये प्रगति की
पहचान हैं
या मेरे शहर की
शान हैं
जाम से निजात
दिलाते हैं
हमें ग्लोबल बनाते हैं
वरन, इसलिए भी
सुहाते हैं क्योंकि
ये बहुतों को
भीषण ठंड में
खुले आसमान के नीचे
न होने का
अहसास दिलाते हैं
और बारिश में
तो सचमुच
शैल्टर बन जाते हैं।
तो फिर सारी गड़बड़ियों
ReplyDeleteकी जड़ हैं
हम और तुम
तो किसको सुधारें
स्वयं को
समाज को
या व्यवस्था को ।
ये बहुतों को
भीषण ठंड में
खुले आसमान के नीचे
न होने का
अहसास दिलाते हैं
और बारिश में
तो सचमुच
शैल्टर बन जाते हैं।
...बहुत ही सुंदर एवम विचारणीय प्रस्तुति.
व्यवस्था पर सटीक प्रहार. ...........
बहुत सुन्दर कविता...बधाई.
ReplyDelete_______________________
'पाखी की दुनिया ' में भी आपका स्वागत है.
हरीश जी , दोनों कवितायेँ बहुत ही भाव पूर्ण और सुंदर. फलाईओवर सच लेकिन कड़वी हकीकत बयां कर रहा है. .. बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeletedono kavitayyen yatharth ke dharatal par sach ko bahut hi khoobsurat dhang se abhivyakt kar rahin hain.
ReplyDeleteSachmuch
ReplyDeleteये बहुतों को
भीषण ठंड में
खुले आसमान के नीचे
न होने का
अहसास दिलाते हैं
Sundar chitran hai....
बहुत अच्छी हैं दोनों कविताएँ!!
ReplyDeleteblogjagat mein aapka swagat hai...abhi samay kam hai isliye follow kiye ja raha hoon....aata rahoonga...:)
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई!
ReplyDeleteमंगल कामना के साथ.......साधुवाद!
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
दोनो ही रचनाये गहन प्रभाव छोडती हैं……………बेहद उम्दा रचनायें दिल को छू गयीं। ब्लोग भी फ़ोलो कर रही हूँ।
ReplyDeletesunder prastuti.........
ReplyDeleteदोनो रचनाएॅ बेमिसाल है। आभार।
ReplyDeleteदोनों ही रचनाये manmohak प्रभावशाली हैं...
ReplyDeleteकहाँ से नए हैं आप...
भाव और अभिव्यक्ति दोनों से ही तो समृद्ध हैं...मंजी हुई है आपकी लेखनी..
सुन्दर सार्थक लिखते रहें...
शुभकामनाएं |||
दोनों ही रचनाएं बहुत उम्दा हैं...
ReplyDeleteआपने सही कहा हम ही जिम्मेदार है..अगर सब कोई पहले खुद को सुधारेगा तो निश्चित रूप से समाज ही सुधर जाएगा....आपका ब्लॉग फॉलो कर रही हूं...